बुधवार, 23 जनवरी 2019

मन की बात | अमन आकाश

थोरा सा शमय निकाल कर इसको परिए..😃

हाँ ठीक है हम बिहारी हैं.. बचपने से अइसे इस्कूल में पढ़े हैं, जहाँ बदमाशी करने पर माट साब "ठोठरी पकड़ के खिड़की दने बीग देने" का धमकी देते थे.. बचपने से हम हिंदी के नाम पर मैथिलि-मगही का खिचड़ी बोले हैं.. ता का हुआ जो हम शाम को साम बोलते हैं, ता का हुआ जो हम टॉपिक को टापिक बोलते हैं, ता का हुआ जो हम सड़क को सरक बोलते हैं. समझ में आ जाता है ना..? बस हो गया.. भाषा का मतलबे ईहे है कि सामने वाला को अपना बात समझा दो.. दवाई दोकान पर जाते हैं तो का कहते हैं हम.? भईया पेट झड़ने का दवाई दीजिए.. तो ऊ पेट ठीक होने का ही दवा देता है ना जी! बात समझ गया ना कि हम का बोलना चाह रहे थे.. जब नउमा पास एगो दवाई दोकानदार इतना बात समझ जाता है ता आप पढ़ल-लिखल लोग काहे बेमतलब बतकुच्चन करते हैं!!😰

तीन साल दिल्ली रहे.. जभिए मुंह खोलते थे सामने वाला बूझ जाता कि बिहारी है.. जबले बिहारी म्यूट, तबले बिहारी क्यूट.. दिल्ली वाला दोस्त सब हंस देता था.. अबे झगरा नहीं होता है, झगड़ा होता है भाई.. गज़ब चौपट आदमी हो महराज, इधर हमको सोंटाई पड़ने वाला है आ तुमको अइसा क्रूशियल टाइम में हमारा परननसिएशन सुधरवाना है.. बहुत कोशिश किए कि साम को शाम बोले, इस चक्कर में सुंदर भी शुन्दर निकल जाता था.. बहुत कोशिश किए सरक को सड़क बोलें, इस चक्कर में आरा-बक्सर को भी आड़ा-बक्सड़ कर देते थे! बहुत हुज्जत हुआ.. लेकिन दिल्ली छोड़ते-छोड़ते भाषा ठीक हो गया.. अब हिंदी बोलते है ता सामने वाला कहता है बुझैबे नहीं करता है आप बिहारी हैं! इसलिए हम इस भाषा में लिखते हैं कि हमारा बिहारी वाला पहचान बचा रहे..!!👳

हाँ, ता शुद्ध हिंदी सीखते-बोलते जीवन का तेइस बसंत बीत गया.. ता अब सोसाइटी कहता है हिंदी वाला नहीं चलेगा.. वी वांट फ़्लूएंट इंग्लिश.. आ अंग्रेजी में भी साला दू अलग-अलग क्लास है.. इंटरप्रेनुएर वाला मिडिल क्लास आ आंत्रप्रेन्यर वाला एलिट क्लास.. अरी दादा, सरक से सड़क पर आने में तेइस साल लग गया.. अब हम कहाँ से इतना जल्दी शशि थरूर बन जाएं.. अभी तो चार साल पहले तक दोकान के बाहर टंगाए SALE-SALE-SALE को साले-साले-साले पढ़ते थे..! अब हमको ईहो डर लगने लगा है कि तीस साल तक होते-होते रो-धो के अंग्रेजी सीख भी जाएं ता कहीं सोसाइटी फिर ना कहीं बोले - "ब्रो, इंग्लिश इज आउटडेटेड.. अब जावा, c++ आ पायथन चलता है!"😀

- Aman Aakash..🖋©

गुरुवार, 1 मार्च 2018

Holi 2018: आगे आने वाले समय के लिए होली देती है ऐसे संकेतSource




Source ~Google Image
रंगों का त्योहार होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के एक दिन बाद मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन को लेकर अलग-अलग जगह कई मान्यताएं हैं। शास्त्रों की मानें तो भक्त प्रह्लाद और होलिका की कहानी से इसे जोड़कर देखा जाता है। लेकिन इसके अलावा भी लोगों में होलिका दहन से जुड़ी और भी मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन का धुआं भी हमें कई संकेत देता है। यहां हम आपको बता रहे हैं होलिका दहन के समय से जुड़ी मान्यताएं।
होलिका दहन के समय कहा जाता है कि इसका धुआं जिस दिशा में जाता है उससे राज्य, राजा और प्रजा के बारे में कई तरह के भविष्य के बारे में जानकारी मिलती है। ऐसा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन के समय अगर धुआं सीधा आकाश में जाता है तो इससे राजा के बदलने यानी सत्ता पर्विर्तन और राजा पर किसी तरह के संकट की और इशारा करती है।

इसके अलावा अगर होलिका दहन का धुआं  दक्षिण दिशा की ओर जाता है तो यह राज्य के लिए आने वाले किसी खतरे की तरफ इशारा करता है।  अगर होलिका दहन का धुआं पूर्व दिशा की ओर जाता है तो कहा जाता है कि इससे राज्य में सुख संपन्नता आती है। अगर होलिका दहन का धुआं उत्तर दिशा की तरफ जाता है तो राज्य में धनधान्य की कमी नहीं होती।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैंजिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

मांझी द माउंटेन मैन: बिहारी मोहब्बत की एक अनोखी कहानी!


  • मांझी द माउंटेन मैन: बिहारी मोहब्बत की एक अनोखी कहानी!

ए फगुनिया हम तोरा से बहूते प्यार करत है रे .. नवाजुद्दीन सिद्दिकी की दमदार आवाज में बोला गया यह डायलॉग सीधे हमें याद दिलाता है ‘मांझी द माउंटेन मैन’ फिल्म की!
देखने में तो सिनेमा हॉल की एक सीट पर यह फिल्म काफी शानदार लगती है। मगर यह फिल्म बसी है बिहार के उसी गहलौर पर्वत में आज भी,  जो रास्ता गहलौर पर्वत का सीना चीरकर बाहर निकलता है। वह आज भी बिहार के दशरथ मांझी की बिहारी मोहब्बत की कहानी सुनाता है। वो दशरथ मांझी एक बिहारी ही था जिसके हाथों में इतनी ताकत थी कि उसने अपने सामने पर्वत को झुका दिया!
दशरथ मांझी को माउंटेन मैन के नाम से भी जाना जाता है।
1934 में जन्में दशरथ मांझी का जन्म बिहार के छोटे से गांव गहलौर में हुआ था। उस वक़्त गांव बहुत दयनीय परिस्थिति से गुजर रहा था। ना सड़कें, ना पानी, ना बिजली ..मूल भूत सुविधाओं से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं था गांव का! इसी छोटे से गांव से एक बिहारी के प्यार की कहानी शुरू हुई थी।
गांव पूरी तरह से जात-पात लिपटा हुआ था। मांझी गहलौर के एक गरीब मजदूर के बेटे थे। थोड़े बड़े होने पर वो घर छोड़कर भाग जाते हैं। और फिर कई सालों बाद लौटते है। लौटने के बाद उनकी शादी कर दी जाती है। शादी के बाद गहलौर पर्वत से गिरने से उनकी गर्भवती पत्नी की मृत्यु हो जाती है। उनकी पत्नी का इस तरह से पहाड़ से गिरकर मर जाना उन्हें अंदर तक हिला कर रख देता है। दशरथ मांझी जैसे अपनी पत्नी की याद में पागल हो जाते हैं।
यही आग उनके मन में सिर्फ एक हथौड़े और एक छेनी की मदद से 360 फुट लंबे,30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काट कर सड़क बना देने की हिम्मत भरती है। इस काम को पूरा करने में मांझी को पूरे 22 साल लग गए। जिसके अद्भुत और सराहनीय कार्य के बाद दशरथ मांझी माउटेन मैन बन गए ।
मांझी का यह सफर काफी लंबा संघर्षपूर्ण रहा। पहाड़ को तोड़ता देखकर पूरे गांव वाले मांझी को पागल समझते थे। सब उन्हें ऐसा पागलपन नहीं करने की सलाह देते थे। कोई उनकी मदद को तैयार नहीं था क्योंंकि सभी को यह काम पागलपन लग रहा था।
हालांकि सफल होने के बाद मांझी का कहना था कि इसी पागल शब्द से उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती थी। उन्होंने संकल्प लिया था कि खुद के दम पर वो अतरी और वजीरगंज के दूरी को कम करेंगे।

22 साल के लगातार परिश्रम के बाद आखिरकर वो पहाड़ काटने में सफल रहे। इस काम में मांझी को 1960 से 1982 तक का समय लगा। मगर उनकी इस सफलता के बाद सड़क बनकर तैयार हुई और पूरे गांव के आवा गमन काफी सरल हो गया।अंत में गांव वाले भी उनकी मेहनत को रंग लाता देखकर उनकी मदद करने लगे थे और साथ ही सराहना भी। मांझी की इज्जत इस सड़क के बनने के बाद दोगुनी हो गई थी। मांझी की मृत्यु 17 अगस्त 2017 को हुई थी।
दशरथ मांझी की इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया था। नीतीश कुमार ने उनके नाम पर अस्पताल बनाने की घोषणा भी की है।
दशरथ मांझी पर फिल्म के आलावा एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म (द मैन हू मूव्ड द माउंटेन)भी बनी थी। यह डॉक्यूमेंटरी 2012 में बनी थी जिसके निर्देशक कुमुद रंजन हैं। इसी साल मांझी द माउंटेन मैन बनाने की केतन मेहता ने घोषणा की थी। सत्मेव जयते सीज़न 2 के पहले एपिसोड में भी दशरथ मांझी की कहानी दिखाई गई थी।
एक बिहारी के अंदर का जज्बा बेमिसाल ताकत और अनोखी मोहब्बत ही बिहार की अलग परिभाषा लिखती है। मांझी के इस योगदान को पूरा बिहार हमेशा याद 

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

सौरभ का ब्लॉग: राजपूतों की वीर गाथा

राजपूत...
पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ, पद्मावती फ़िल्म की आड़ में राजपूत राजाओं पर प्रश्न खड़ा करने और उन्हें कायर कहने वाले बुद्धिजीवी कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं। अद्भुत अद्भुत प्रश्न गढ़े जा रहे हैं। राजपूत वीर थे तो हार क्यों जाते थे? राणा रतन सिंह योद्धा थे तो उनकी पत्नी को आग लगा कर क्यों जलना पड़ गया? स्वघोषित इतिहासकार यहां तक कह रहे हैं कि सल्तनत काल के राजपूत शासक इतने अकर्मण्य और कायर थे कि मुश्लिमों का प्रतिरोध तक नहीं कर सके।
सोचता हूँ, क्या यह देश सचमुच इतना कृतघ्न है कि राजपूतों को कायर कह दे? सन 726 ई. से 1857 ई. तक सैकड़ों नहीं हजारो बार, सामने हार देखने के बाद भी लाखों की संख्या में मैदान में उतर कर शीश चढ़ाने वाले राजपूतों पर यदि हम प्रश्न खड़ा करें, तो हमें स्वयं सोचना होगा कि हम कितने नीचे गिर चुके हैं।
आप कहते हैं वे हारे क्यों?

श्रीमान, शिकारी और शेर के युद्ध मे शिकारी लगातार जीतता रहा है, तो क्या इससे शेर कायर सिद्ध हो गया? नहीं श्रीमान! शेर योद्धा होता है, और शिकारी क्रूर। राजपूत योद्धा थे, और अरबी आक्रमणकारी क्रूर पशु। राजपूतों के अंदर मनुष्यता थी, तुर्कों के अंदर रक्त पीने ही हवस। वहशी कुत्ते तो बड़े बड़े बैलों को काट लेते हैं, तो क्या बैल शक्तिहीन सिद्ध हो गए? और यदि सच मे आपको लगता है कि तुर्कों, अरबों के सामने राजपूत बिल्कुल भी प्रभावी नहीं रहे, तो आप दुनिया की अन्य प्राचीन सभ्यताओं की ओर निगाह फेरिये, और खोजिए कि मिस्र के फराओ के वंसज कहाँ हैं? ढूंढिए कि मेसोपोटामिया की सभ्यता क्या हुई। पता लगाइए कि ईरान के सूर्यपूजक आर्य अब क्या कर रहे हैं। श्रीमान! इस्लाम का झंडा ले कर अरब और तुर्क जहां भी गए, वहां की सभ्यता को चबा गए। वो राजपूत ही थे, जिनके कारण भारत बचा हुआ है। उन्होंने अपने सरों से तौल कर इस मिट्टी को सींचा नहीं होता, तो आप अपने घर मे बैठ कर बुद्धिजीविता नहीं बघारते, बल्कि दाढ़ी बढ़ा कर यह तय कर रहे होते कि शौहर का अपनी बीवी को कितने कोड़े मारना जायज है।
आज एक अदना सा पाकिस्तान जब आपके सैनिकों का सर काटता है, तो आप बौखला कर घर मे बैठे बैठे उसको गाली देते और अपनी सरकार को कोसते रह जाते हैं। तनिक सोचिये तो, भारतीय राजाओं से मजबूत सैन्य उपकरण(बारूद और तोप वही ले कर आये थे), अपेक्षाकृत अधिक मजबूत और तेज घोड़े, और ध्वस्त कर देने का इरादा ले कर आने वालों के सामने वे सैकड़ों बार गए और शीश कटने तक लड़ते रहे, इसके बाद भी जब आप उनपर प्रश्न खड़ा करें तो क्या साबित होते हैं आप?

आपको जौहर अतार्किक लगता है तो यह आपकी दिक्कत है भाईजान, पर अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए आग में जल जाने वाली देवियों के ऊपर प्रश्न खड़ा करने की सामर्थ्य नहीं आपकी, आप तो 40 डिग्री तापमान पर ही बिजली के लिए सरकार को गाली देने वाले लोग हैं। भाई जान, जलती आग में कूद जाने के लिए मर्द का नहीं, स्त्री का कलेजा चाहिए, और हार दिखा रहे युद्ध में भी कूद कर शीश कटा लेने के लिए राजपूत का कलेजा।
दूसरों की छोड़िये, जिन चंद राजपूत राजाओं को हम और आप मुगलों का समर्थन करने के कारण गाली देते और गद्दार कहते हैं, उनके पुरुखों ने भी बीसों बार इस राष्ट्र के लिए सर कटाया था। आज भी किसी राजपूत लड़के के खानदान का पता कीजिये, मात्र तीन से चार पीढ़ी पहले ही उसके घर में कोई न कोई बलिदानी मिल जाएगा।
घर मे बैठ कर तो किसी पर भी उंगली उठाई जा सकती है बन्धु, पर राजपूत होना इस दुनिया का सबसे कठिन काम है।
कलेजे के खून से आसमान का अभिषेक करने का नाम है राजपूत होना। तोप के गोले को अपनी छाती से रोकने के साहस का नाम है राजपूत।
आप जिस स्थान पर रहते हैं न, पता कीजियेगा उस जगह के लिए भी सौ पचास राजपूतों ने अपना शीश कटाया होगा।
छोड़ दो डार्लिंग, तुमसे न हो पायेगा।

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

सौरभ का ब्लॉग : पद्मावती का इतिहास और फिल्म


नया फिल्म आने वाला है संजय लीला भंसाली का पद्मावती  इस मूवी ने पुरे मार्किट आग लगा रखा है।
जैंसा की हम सब  भंसाली तो  शुरू से ही  के साथ छेड़छाड़ करता आया लेकिन इस  बार तो हद ही पार कर दी इस भंसाली कहानी और तथ्य पर गया है  शरासर गलत  है
सोर्स : विकिपीडिआ 
ये कहानी  की और चलिए अब लेते है एक्सपर्ट्स  की राय और इतिहासकारो का मत
इतिहास करो का ये मानना है की -
 इस विषय पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर नजफ हैदर कहते हैं कि उनका शोध 14वीं और 16वीं शताब्दी पर है, इसलिए वो भरोसे के साथ कह सकते हैं कि पद्मावती एक काल्पनिक किरदार हैं। यहां तक कि अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर हमले की बात तो करता है, लेकिन पद्मावती का कोई जिक्र नहीं है। उस  समय की कोई भी किताब उठा लें, उसमें कहीं भी जिक्र नहीं मिलता है। पद्मावती के लोकप्रिय होने की वजह यह है कि स्थानीय राजपूत पंरपरा के तहत चारणों ने इस किरदार का खूब बखान किया। इस वजह से भी यह कथा काफी लोकप्रिय हुई। यह सच है कि 16वीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य पद्मावत में मलिक मुहम्मद जायसी ने इस किरदार को जिंदा किया। हिन्दी साहित्य में पद्मावती की जगह है और साहित्य भी इतिहास का एक हिस्सा होता है। हिन्दी साहित्य को पढ़ाने के लिए पद्मावती का विशेष रूप से इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन इतिहास की किताब में पद्मावती की कोई जगह नहीं है। यदि इतिहास की किताब में पद्मावती है तो यह भ्रमित करने वाला है।

थोड़ी देर के लिए ये  उटपटांग लगे फिर भी मानने लायक है लेकिन क्या आप जानते है की मलिक मुह्हमद जायसी ने पद्मावत रचंना १६वी सदी में की थी और रतन सिंह  सदी में राजस्थान पर राज किया करते थे अतः ये बाते आधी हक़ीक़त आधा फ़साना है लेकिन फिर भी अगर इस से भावनाये आहत होतृ है  मानना है की इस  अविलमब बैन कर देना चाहिए और  केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड  को इतिहासकारो की एक कमिटी बना कर ऐसे फिल्मो को रोकना  चाहिए जो गलत इतिहास। 

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

इस बार छठ छूट न पाए | अपनी परंपरा बचाये रखने की सीख देता ये वीडियो “कबहू ना छूटी छठ”

दिवाली की रात के बाद की ही सुबह से हवाओं में हल्की ठण्ड के साथ छठ की आहट आने लगती है। चारो ओर की चहल पहल इस महापर्व के नज़दीक आने का इशारा करने लगती है। लोगों में तो उत्साह और हर्षोल्लास की लहर होती ही है इसके साथ साथ मौसम भी एक सुहानी अंगड़ाई ले कर मानो छठ का स्वागत कर रहा होता है। ऐसे ही माहौल को और छठमय बनाने नितिन चंद्रा और उनकी निओ बिहार की टीम पिछले साल के जैसे इस बार भी छठ के उपलक्ष्य में छठ का एक नया वीडियो ले के आये हैं।
“कबहू ना छूटी छठ”, ये नाम है इस गाने का। क्रांति प्रकाश झा और क्रिस्टीन ज़ेडएक ने इस बार भी अपने अभिनय से मन मोह लिया है। इस गाने में चार चाँद लगाया है हिंदी और भोजपुरी संगीत की दो महान आवाज़ें अल्का याग्निक और भरत शर्मा व्यास ने। छठ के कालजयी गानों की लड़ी में इस गाने ने एक और कड़ी जोड़ दी है।
इस गाने में बात की गयी है हमारी इस परंपरा को ख़त्म न होने देने की। आज के दौर में जहाँ लोगों की प्राथमिकतायें कृत्रिम और अपनी जड़ों से दूर करने वाली चीज़ों की तरफ मुड़ गयी है वहाँ ज़रूरत है कि अपनी मिट्टी की ख़ुश्बू देने वाली इस विरासत को हम सहेज के रखें। वो बात जो इस त्यौहार को इतना ख़ास बनाता है वो ये है कि इसमें अमीरी-गरीबी, जाति-धर्म, पुरुष- महिला का भेद नहीं होता है। बिहार और हमारे पुरे देश को इस से बेहतर सन्देश देने वाला दूसरा त्यौहार शायद ही कोई हो। ये एक तरह से बुनियाद है हमारे व्यक्तिगत आदर्शों और उस आदर्श समाज की जिसकी हम कामना करते हैं। इन सब को ध्यान में रखते हुए ये सुनिश्चित करना ज़रूरी हो जाता है कि वक़्त के साथ आगे बढ़ने की होड़ में छठ पीछे ना छूट जाये।

तो हम सबको ये ध्यान रखना होगा कि हम अपनी इस विरासत को अपनी ज़िन्दगी में अहमियत दें। जो घर से दूर हैं उनको ये छठ घर बुलाती है। और अगर घर न भी आ पाएं तो जहाँ भी हों इस छठ की भावना को दिल में बचाये रखें।

लेख साभार - PatnaBeats
वीडियो साभार - NeoBihar

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

पलट तेरा ध्यान किधर है : नया पोस्ट इधर है



पलट तेरा ध्यान किधर है यूट्यूब पर एक चैनल आजकल धमाल मचा रहा है जिसके एंकर है हमारे अपने,हमारे बीच,हमारे भाई साहिल चंदेल यूट्यूब की दुनिया में साहिल चंदेल या पलट तेरा ध्यान किधर है कोई ज्यादा पुराना नाम नहीं है बस कुछ दिन पहले आया और लोगो के दिल पर राज करने लगे लगा आज इनके चैनल पर 1 लाख सब्सक्राइबर पूरे हो गए है तो हम लेकर आए है उनसे ही बातचीत का एक छोटा सा अंश वैसे वास्तव म य छोटा सा अंश नहीं बल्कि छोटी सी बातचीत का बड़ा सा सारांश है क्योंकि आजकल इंडिया में यही चल रहा है छोटी बातो को बड़ा मुद्दा बनाया जाता है।
साहिल से मैंने खुद बात की है लेकिन फेसबुक के माध्यम से सच पूछो तो मै इसे आज तक व्यक्तिगत रूप से मिलवनही पाया लेकिन मिलने का समय जरूर मांग लिया है। अब बात करते है साहिल और इनके चैनल के बारे में साहिल एक मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखते है हो बिहार के समस्तीपुर के एक छोटे से कस्बे वारिसनगर के पास किशनपुर बैकुंठ है और खुशी की बात ये है कि ये हमारा कस्बा है जो कि अपने आप में खुशहाल है। अब बात करते है साहिल और साहिल के कारनामो कि हमारी बात्चीत के आधार पर -

 प्रश्न - तो सबसे पहले हम ये जानना चाहेंगे कि आपने पलट तेरा ध्यान किधर है कि शुरुआत कैसे की?
 उत्तर - कुछ खास नही बस इडिटिन्ग और निर्देशन कि दुनिया मे कुछ खास करने के लिये मैंने इस चैनल की शुरुआत की थी और आज हम अपने सभी सब्सक्राइबर के साथ के बूते ही आज यहाँ हूँ।इन बातों के लिए मैं अपने सभी सब्सक्राइबर को धन्यवाद कहना चाहूंगा।
 प्रश्न - क्या आपने फ़िल्म निर्देशन या एदितिन्ग के क्षेत्र मे शिक्षा प्राप्त कि है?
 उत्तर - नहीं,नहीं यूटुब ही मेरा शिक्षन संस्थान है और मैने यही से डिग्री ली है,यहां मैने काफी लोगो से बहुत कुछ सिखा है।
 प्रश्न - आप ने अपना पहला वीडियो कैसे शूट किया था?
 उत्तर - मैं उस समय गुड़गाव(अब गुरुग्राम) स्थित क्म्पनी मे काम कर रहा था,सुबह के 2 बज रहा था और हमारा सिस्टम काम नहीं कर रहा था उसी समय मैंने अपने दोस्तों को साथ पहली बार शूट किया था,फिर मेरे एक दोस्तो ने मुझे यूट्यूब पर वीडियो अपलोड करने के लिए ।
 वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे प्रश्न - आप अपना आदर्श किसे मानते है? उत्तर - वैसे तो किसी को भी नही लेकिन मैने भुवन बम(BB Ki Vines) से बहुत कुछ सीखा है,और अकेले ही चल पड़ा हूँ ,जिसमे मेरे साथ लोग जुड़ते गए और आज मैं यहाँ हूँ,ये मेरे साथियो की बदौलत है।

प्रश्न - आपके चंद पसन्दीदा यूटुब चैनल?
उत्तर - वैसे तो मुझे यूट्यूब के लगभग सभी चैनल पसंद करता हूँ लेकिन मेरे कुछ पसंदीदा चैनल है - Film Riot,Sam And Niko,Surface Studio और भी है

प्रश्न - तो अभी आप क्या कर रहे है?

उत्तर - मेरा अपना ओफ़िस है जहां मैं एदितिन्ग का काम करता हूं,मैने दो फुल फ़िल्म भी एडिट किये है जो कि प्यार बनाम खाप पंचायत और कसम हमार माई के है
भाई ने दो फ़िल्म भी एडिट की है जो अभी रिलिज नही और भैया का कहना है कि वो करो जिससे तुम्हे प्यार है,बद्ले मे तुम्हे भी प्यार मिलेगा

मन की बात | अमन आकाश

थोरा सा शमय निकाल कर इसको परिए..😃 हाँ ठीक है हम बिहारी हैं.. बचपने से अइसे इस्कूल में पढ़े हैं, जहाँ बदमाशी करने पर माट साब "ठोठरी प...